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Saturday 21 November 2015

फ्रांस हमले से होंगे यूरोप में आर्थिक बदलाव


पेरिस हमले के बाद यूरोप के देशों में सुरक्षा के मद्देनजर कई बड़े बदलाव किए जाएंगे। इन बदलावों से जहां एक तरफ यूरोप में सुरक्षा बढ़ेगी वहीं इससे यूरोप की अर्थव्यवस्था पर बोझ भी बढ़ेगा। शरणार्थी संकट और व्यापार में आने वाली बाधाओं से यूरोप की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ जाएगी। आईए जानते हैं इन्हीं बदलावों के बारे में...

बढ़ेगी जासूसी 

यूरोप के अधिकतर देश निगरानी कार्यक्रम पर जोर देंगे। निगरानी के लिए इलेक्ट्रिॉनिक यंत्रों का इस्तेमाल किया जाएगा। ब्रिटेन में हाल ही में स्नूपर चार्टर नाम का एक बिल लाया गया है। इस बिल से स्थानीय पुलिस को अधिकार मिल गया है कि वह किसी के भी कंप्यूटर को हैक कर निजी जानकारी हासिल कर सकते हैं। ऐसे कानूनों की मांग दूसरे देशों में भी बढ़ेगी। हालांकि फ्रांस और जर्मनी हमेशा निगरानी कार्यक्रमों के विरोधी रहे हैं।

संकट में शरणार्थी नीति 

अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका है लेकिन एक आतंकी के बारे में कहा जा रहा है कि वह ग्रीस की सीमा से शरणार्थी के रूप में फ्रांस तक आया था। इससे शरणार्थियों की समस्या काफी बढ़ जाएगी। यूरोपीय संघ की तरफ से 1 लाख 60 हजार शरणार्थियों को अलग-अलग देशों में शरण देने की बात कही गई है लेकिन इस हमले के बाद देश सुरक्षा का हवाला देते हुए शरणार्थियों को शरण देने से इनकार कर सकते हैं।

सीमाओं में बटेगा यूरोप

यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि यह मानी जाती है कि इन देशों के बीच में सीमाएं नहीं है। लेकिन शरणार्थी संकट के बाद से ही कुछ देशों ने अपनी सीमाओं पर बाड़ लगा दी थी। ऐसे देशों की संख्या बढ़ सकती है इससे ‘बॉर्डर फ्री ट्रेड’ नीतियों को काफी नुकसान होगा और व्यापार कमजोर पड़ेगा।

घटेगी मार्केल की लोकप्रियता 

शुरू से ही जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने जासूसी कार्यक्रमों का विरोध किया है। साथ ही जर्मनी शरणार्थियों को शरण देने वाले देशों में भी अव्वल है। लेकिन हमले के बाद मार्केल की छवि कमजोर पड़ सकती है। अगर मार्केल अपने पद से हटाई जाती हैं तो यूरोपीय संघ को एकजुट रख पाना मुश्किल हो जाएगा।

सीरिया सरकार का मुद्दा हुआ फीका

इस हमले ने दो दिन पहले वियना बैठक में सीरिया में होने वाले चुनाव के मुद्दे को एक बार दोबारा फीका कर दिया है। इस बैठक में दुनिया की बड़ी शक्तियां सीरिया में नई सरकार बनाने की बात पर सहमत हो गई थी। इस सहमति के बाद से लग रहा था कि यूरोप, सीरिया और रूस के बीच में संबंध सुधरेंगे लेकिन अब ऐसा कहना काफी मुश्किल है।




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