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Friday 11 November 2011

मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है

सभ्यता की हद्दो को लांघने वाले फ्रांसिस पेंटर नेव्तों सुजा ने तीन साल पहले एक पेंटिंग बनायीं थी जो काफी  चर्चा में रही ..इसमें एक दंपत्ति की तस्वीर दो कैनवास पर बनाये थी ..इसमें एक तरफ एक महिला अपने बचे को गोद में लिए बहती  है..दूसरी और एक आदमी काट पन्त पहने बहता है..जब सुजा साईं पुचा गया की उन्होंने ऐसा क्यों किया...तो उन्हने जवाब दिया क जब दंपत्ति अलग होगी तो पेंटिंग को ले कर लड़े न करनी पड़े..उस समय ये जवाब बहूत से लोगो को अजीब लगा होगा..मगर अगर इसे आज के परिद्शेय में दखे तो सुजा नै भविष्य  की  एक समस्या की तरफ इंगित करते हुए ये पेंटिंग बनाए थी...
आज जब लोग तलक ले कर अलग होते है तो सिर्फ कस्टडी  या कैश  के लिए ही नहीं बहुत सी अजीबो गरीब चीजों पे लड़ते नज़र आते है ...हाल ही में सिंगर  अदनान सामी और सबा के तलक  समय सबा का कहना था की वो साड़ी  शर्तो को मानने को तैयार है बशर्ते अदनान को रौक (कुत्ता) वापस करना पड़ेगा..
वकीलों का ऐसा कहना है की तलक ले रही दम्पतिया के मध्य बच्चो की क्स्तोद्य  का मसला तो आराम से सुल्ज जाता है...किन्तु पेंटिंग्स , कुत्ते आदि तीखी चिट्टा कशी का कारन बन जाते है...
मशहूर वकील मुदुला कदम कहती है की तलक के दौरान दम्पति उसी  सामान पे जम क्र लड़ते है जिससे वो भावनात्मक रूप से जुद्दे होते है..
ऐसे में लडती झगडती अलग होती ये दम्पतियन संस्कृति का गला  तो घोट ही रही है और समाज के सामने बहूत ही गंभीर समस्या पैदा कर रही है ..
तलक शुदा दम्पतियाँ अपने बच्चो का भविष्य तो अन्धकार में डालते ही है साथ ही इन सामान कके लिए लड़ लड़ कर उनके सामने ये छवि  पेश करते है की आज इन्सान से ज्यादा  किसी भी इन्सान के लिए सामान ज्यादा  मायने रखता है..

किसी कुत्ते या  पेंटिंग्स  क साथ इतने भावनात्मक रूप से जुड़ कर अपनों को ही बेगाना कर देना ..कहा की इंसानियत है..

Sunday 6 November 2011

हमारी "कमज़ोर" न्यायिक व्यवस्था

डी म के की नेता कनिमोझी अभी भी जेल की सलाखों के पीछे है...उन्होंने नयायपालिका से ये गुहार लगे थी की उनको जमानत मिलनी चाहिए ...क्युकी अभी तक उनका गुनाह साबित नहीं हुआ है.. नयायपालिका नै यह कह कर जमानत की अर्जी नामंजूर कर दी की इनकी दलीलों में कोई दम नहीं है ...
इसी नयायपालिका को कल उस वक़्त शर्मिंदा होना पड़ा जब एक मरा हुआ व्यक्ति वापस आ गया ...२ अगस्त २००० को रामेश्वर , मोहन और दाल चाँद को भगवान दास के मर्डर के केस मई तीनो को उम्र कैद सुनाये गयी थी ...यह तीनो दस साल से जिस भगवन दास के मर्डर की सज़ा काट रहे थे ..वही अब वापस आ गया ..
भगवान् दास का कहना था की वो तो हिमांचल प्रदेश में काम कर रहा था ...अब सवाल ये है की क्या भारतीय न्यायिक व्यवस्ता क्या उन तीनो को वेह १० साल वापस कर सकती है...उनके परिवार नै जिस हालातो में यह १० साल काटे क्या उसकी भरपाई कर सकती है? 
आज भी किसी केस को सुल्जाने में इतना समय क्यों लगा देती है...बलात्कार के किसी केस में सुनवाई जब ही क्यों हो पाती है...जब या तो वो महिला दादी नानी बन जाती है या फिर अपराधी ही दुनिया से सिधार जाता है...
क्यों अभी तक बाबरी मस्जिद पे कोई फैसला नहीं हो पाया ..?
आरुशी जैसे मासूम को अभी तक न्याय क्यों नहीं मिल पाया...?
सवाल कई है जिनके सवाल अभी भी नदारद है...!!
कहने को तो हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे है...तो क्यों आज हमारी न्यायिक व्यवस्था इतनी कमज़ोर है ...

Friday 4 November 2011

भुझो तो जाने ..!!

एक नयी समस्या उत्पन हो रही है जिसपे किसी का अभी तक विशेष ध्यान नहीं गया है...जो पेट्रोल की बदती कीमतों जितनी महत्वपूर्ण तो नहीं है..किन्तु लालू की अंग्रेजी जैसे रोचक ज़रूर है..बाबा राम देव आखिर है क्या?
कभी तो वो योग गुरु बन जाते है कभी दुसरो को देख कर अनशन की प्रवाह में बहते हुए हॉस्पिटल पहुच जाते है...कभी किसी तलेंट शो में  पहुच कर निर्णय देते नज़र आते है तो अब किसी कब्बडी प्रतियोगिता में खिलाडियों का उत्साह  बढ़ने पहुचते है  तो उनका खुद का उत्साह  इतना बाद जाता है की वो खुद ही मैदान में कूद पड़ते है ...वह रे बाबा ..तेरे रूप अनेक...अब ऐसे में बाबा के अनुयायी अपने बहुप्रतिभाशाली बाबा के किस रूप को आदर्श माने???? ये तो बाबा ही बता सकते है ..!!