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Saturday 30 June 2012

जनता का फरमान नहीं चाहिए मेहमान

हाल ही में हुए विधान सभा चुनाव के नतीजो ने जहाँ एक तरफ जनता में हर्ष और उत्साह का प्रसार किया वहीँ राष्ट्रीय पार्टियों का राज्यों में आने के सपने को मटियामेट कर दिया .इस बार विधान सभा चुनाव के नतीजे चौकाने वाले ज़रूर थे . उन्होंने एंटी इनकोमबेंस और प्रो इन्कोमबेंस दोनों के उद्हारण पेश करे . एक तरफ उत्तर प्रदेश था तो दूसरी तरफ पंजाब . उत्तर परदेश के लोगो ने हठी के मुकाबले साइकिल की सवारी बेहतर समझी .बसपा सुप्रीमो मायावती जो एक दलित दल की चाही के साथ वोट बटोरती नज़र आती थी . अब उन्हने "सर्व जन हिताय सर्व जन सुखाय " का नारा दिया .तिलक तराजू और तलवार इनको मारो जूते चार की जगह पंडित शंख बजेगा हथियो बढता जाएगा का सहारा लिया। मगर अब काफी देर हो चुकी थी . उत्तर प्रदेश की जनता ने यह देख लिया था की 5 साल में जिस मुख्य मंत्री ने उनकी तरफ मुद कर भी नहीं देखा अब उसके जाने का वक़्त आ गया है। इस सब के चलते समाजवादी  के एक युवा ने सबको अपना दीवाना बना दिया था यह और कोई नहीं मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र अखिलेश यादव थे . मुलायम सिंह ने अंग्रेजी और कंप्यूटर के साए से भी दूरी बनाए रखी थी. आज उन्ही के बेटे ने 12वी  पास बचो को टैबलेट  देने का वादा कर रहे थे।
उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय  पार्टियाँ कांग्रेस  और भाजपा ने भी अपने सिक्के को चलाने की कोशिश तो की किन्तु नके सिक्के भी खोते ही निकले . जहाँ राहुल गांधी  राजीव गांधी बनने की कोशिश करते रहे वहीँ भाजपा में उमा भारती का सहारा लिया गया . राहुल गांधी को जहां फ़िज़ूल का गुस्सा आता रहा वहीँ भाजपा अपने ही जोड़ तोड़ में थी . यह राष्ट्रीय पार्टियाँ शायद भूल गयी थी कुछ रात किसी गरीब की कुटियाँ में गुज़ारने से या कुछ दिन गरीबो की सुध लेने से वो स्थानीय नहीं हो जाएँगे . जहाँ कांग्रेस को बेआबरू हो कर कूचे से निकलना पड़ा उसी तरह भाजपा को भी मुह की खानी पड़ी .
 
कांग्रेस का गढ़ रहे रायबरेली और अमेठी में भी वो कुछ ख़ास नहीं कर पाई और भाजपा की भी सीटे  पिछले बार की मुताबिक घटती रही .अगर पंजाब की बात की जाए तो आकली दल ने अपनी पकड़ बनाए रखी . इतना ही नहीं अपनी स्थिति और मज़बूत कर ली . जाटो के अलावा अन्य समुदायों ने भी इस दल में अपना विश्वास दिखाया . सुखबीर सिंह बादल ने 7 से ज्यादा हिन्दुओं को टिकेट दिया बल्कि मंत्रिमंडल में भी जगह दी। अनुमान है की आने वाले दिनों में आकली दल को भाजपा की बैसाखी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी. कांग्रेस के अन्दर अपना ही घमासान चल रहा था। अमरिंदर सिंह और बहेल के बीच कुर्सी की खीचतान बढती जा रही थी। जिसका सीधा फायदा आकाली -भाजपा सर्कार को एक बार फिर मिला.
जो भी हो इन चुनाव परिणामो ने यह सिद्ध कर दिया
"जो करेगा काम वो पाएगा इनाम नहीं तो भैया राम -राम"