कहते है इंसान अगर संकल्प कर ले तो उसके संकल्प को कोई हरा नहीं सकता...हमारे पूर्वजो का भी ऐसा ही कुछ मानना था के मनुष्य बड़ा दृद संकल्पी प्राणी है..वो जो ठान ले वो कर के ही दम लेता है ...मगर बात अगर सिगरेट जैसी लत को छोड़ने की हो तो पता नहीं हमारे अन्दर के उस मनुष्य को क्या हो जाता है...मैंने अपने आस पास ऐसे कई लोग देखे है जो सुबह अपने घर वालो के कहने में आ कर संकल्प तो कर लेते है ..मगर शाम तक उस संकल्प को धुएं में कही उड़ा देते है...जबकि हम रोज़ देखते न जाने कितने लोग इसी के कारण मौत का ग्रास बन जाते है ...
आज विज्ञानं ने इतनी तररकी कर ली है की उसने ऐसे कई सारे विकल्प तैयार कर लिए है जो मनुष्याई संकल्प को कही पीछे छोड़ आये है ...ऐसा ही एक टीका इजात किया गया है ..जिसे एक बार लगवाने से मनुष्य सिगरेट दो दिन में छोड़ देगा ...
मगर ऐसे में हमारे संकल्प को क्या हो जाता है ...वैसे तो हम संसार की सर्वोच्च रचना है...तो हमे किसी विकल्प की क्या आवश्यकता ...
क्या हमारा संकल्प उन विकल्पों के आगे कमज़ोर पड़ जाता है ...या हम मनुष्य संसार की सर्वोच्च रचना मात्र एक वेहम है ....