Powered By Blogger

Saturday 21 November 2015

विश्व में भारत के पास नहीं शौचालय



भारत में 7 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। देखा जाए तो दुनिया में 65 करोड़ आबादी के पास साफ पानी की व्यवस्था नहीं है। जबकि 2.3 अरब लोगों के पास शौचालय की सुविधा मौजूद ही नहीं है। हालांकि भारत की स्थिति को सुधारने के लिए स्वच्छ भारत जैसे अभियान चलाए गए हैं लेकिन इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन वाटर ऐड की रिपोर्ट में भारत की स्थिति को सबसे खराब बताया गया है।

खुले में शौच करने को मजबूर
भारत ऐसे देशों में अव्वल है जिनके पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है। साथ ही भारत ऐसे देशों की सूची में भी अव्वल है जो खुले में शौच करने को मजबूर हैं।

बढ़ रही बिमारियां
इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में शौचालय की कमी के कारण लोगों के साथ स्वस्थ्य संबंधी समस्याएं भी सामने आ रही हैं। विश्व स्वस्थ्य संगठन के अनुसार भारत में हर साल लगभग डेढ़ लाख बच्चे डायरिया के कारण पांच साल से पहले मर जाते हैं। संगठन के अनुसार इसका प्रभाव मातृ-शिशु मृत्यु दर पर भी पड़ता है।


इन देशों के पास नहीं शौचालय
देश                    जनसंख्या
भारत              774,222,300
चीन                329,851,200
नाइजीरिया          130,387,200
इंडोनेशिया          100,168,400
इथोपिया               71,217,200
पाकिस्तान             68,666,800
बांग्लादेश             63,267,800
कांगो                  50,833,300
तंजानिया               44,159,400
रूस                     39,468,700

 खुले में शौच करने को मजबूर
देश                      जनसंख्या(मिलियन)
भारत                      567.4
इंडोनेशिया                   52.2
पाकिस्तान                    25.1
बुर्किना फासो                 9.9
नेपाल                           9
कंबोडिया                     7.4
बेनिन                         5.9
नाइजीरिया                     4.6
हैती                              2

01 लाख 40 हजार पांच साल से कम बच्चे डायरिया के कारण मर जाते हैं
40 फीसदी बच्चों की लंबाई औसत लंबाई से कम रह जाती है
23 फीसदी हुआ है पिछले पंद्रह सालों में स्वच्छता में सुधार

आगे क्या
-2019 तक खुले में शौच करने की समस्या को खत्म करना चाहती है सरकार
-अगले चार सालों में तेजी से करना होगा भारत की स्थिति में सुधार
-9 करोड़ 90 लाख घरों तक पहुंचानी है भारत सरकार को शौचालय की सुविधा




फ्रांस हमले से होंगे यूरोप में आर्थिक बदलाव


पेरिस हमले के बाद यूरोप के देशों में सुरक्षा के मद्देनजर कई बड़े बदलाव किए जाएंगे। इन बदलावों से जहां एक तरफ यूरोप में सुरक्षा बढ़ेगी वहीं इससे यूरोप की अर्थव्यवस्था पर बोझ भी बढ़ेगा। शरणार्थी संकट और व्यापार में आने वाली बाधाओं से यूरोप की अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ जाएगी। आईए जानते हैं इन्हीं बदलावों के बारे में...

बढ़ेगी जासूसी 

यूरोप के अधिकतर देश निगरानी कार्यक्रम पर जोर देंगे। निगरानी के लिए इलेक्ट्रिॉनिक यंत्रों का इस्तेमाल किया जाएगा। ब्रिटेन में हाल ही में स्नूपर चार्टर नाम का एक बिल लाया गया है। इस बिल से स्थानीय पुलिस को अधिकार मिल गया है कि वह किसी के भी कंप्यूटर को हैक कर निजी जानकारी हासिल कर सकते हैं। ऐसे कानूनों की मांग दूसरे देशों में भी बढ़ेगी। हालांकि फ्रांस और जर्मनी हमेशा निगरानी कार्यक्रमों के विरोधी रहे हैं।

संकट में शरणार्थी नीति 

अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका है लेकिन एक आतंकी के बारे में कहा जा रहा है कि वह ग्रीस की सीमा से शरणार्थी के रूप में फ्रांस तक आया था। इससे शरणार्थियों की समस्या काफी बढ़ जाएगी। यूरोपीय संघ की तरफ से 1 लाख 60 हजार शरणार्थियों को अलग-अलग देशों में शरण देने की बात कही गई है लेकिन इस हमले के बाद देश सुरक्षा का हवाला देते हुए शरणार्थियों को शरण देने से इनकार कर सकते हैं।

सीमाओं में बटेगा यूरोप

यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी उपलब्धि यह मानी जाती है कि इन देशों के बीच में सीमाएं नहीं है। लेकिन शरणार्थी संकट के बाद से ही कुछ देशों ने अपनी सीमाओं पर बाड़ लगा दी थी। ऐसे देशों की संख्या बढ़ सकती है इससे ‘बॉर्डर फ्री ट्रेड’ नीतियों को काफी नुकसान होगा और व्यापार कमजोर पड़ेगा।

घटेगी मार्केल की लोकप्रियता 

शुरू से ही जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने जासूसी कार्यक्रमों का विरोध किया है। साथ ही जर्मनी शरणार्थियों को शरण देने वाले देशों में भी अव्वल है। लेकिन हमले के बाद मार्केल की छवि कमजोर पड़ सकती है। अगर मार्केल अपने पद से हटाई जाती हैं तो यूरोपीय संघ को एकजुट रख पाना मुश्किल हो जाएगा।

सीरिया सरकार का मुद्दा हुआ फीका

इस हमले ने दो दिन पहले वियना बैठक में सीरिया में होने वाले चुनाव के मुद्दे को एक बार दोबारा फीका कर दिया है। इस बैठक में दुनिया की बड़ी शक्तियां सीरिया में नई सरकार बनाने की बात पर सहमत हो गई थी। इस सहमति के बाद से लग रहा था कि यूरोप, सीरिया और रूस के बीच में संबंध सुधरेंगे लेकिन अब ऐसा कहना काफी मुश्किल है।





पांच गलतियों से बना आईएस खूंखार


आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के पैदा होने के लिए अक्सर पश्चिमी और अमेरिकी देशों की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेकिन आईएस का खतरा दुनिया पर काफी पहले से था, जिसको लगातार नजरअंदाज किया गया। इस्लामिक स्टेट के बनने में प्रशासनिक तौर पर कई ऐसी गलतियां हुईं जिन्होंने आईएस को और खूंखार बना दिया।

गलती 1
खतरे को समझने में भूल
अमेरिका की तरफ से 2011 में इराक से सेना हटाई गई तो उसे लगा कि उसने एक बढ़ते खतरे का अंत कर दिया है। अमेरिका ने बगदादी के खतरे को कितना कम आंका था यह इसी बात से साबित हो जाता है कि अमेरिका ने बगदादी पर रखी ईनामी राशि को 50 लाख डॉलर से कम कर के 1 लाख डॉलर कर दिया था।

गलती 2
रिपोर्ट पर नहीं डाली नजर
 साल 2012 में आईएस पर आई एक रिपोर्ट को अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने देखा तक नहीं। रक्षा एजेंसी के पूर्व प्रमुख जनरल माइकल टी. फ्लाइन ने बताया कि इस रिपोर्ट को किसी ने देखने लायक नहीं समझा। माइकल उस समय एजेंसी के प्रमुख थे। हाल ही में ओबामा ने जॉर्ज डब्ल्यू बुश की इन नीतियों की निंदा की थी।

गलती 3
बुराई करेगी अंत
ब्रुकिंग संस्थान से जुड़े प्रोफेसर मैक्केनट्स जो आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है कि अमेरिकी अधिकारियों ने यह मान लिया था कि आईएस अपनी बुराईयों के कारण खुद खत्म हो जाएगा इसके लिए ज्यादा परेशान होनी की जरूरत नहीं है। लेकिन आईएस अपनी बुराईयों के साथ तेजी से बढ़ता जा रहा है।

गलती 4
इराक की  नीतियां हुई असफल
इराक तत्कालीन प्रधानमंत्री नुर अल मलिकी के कार्यकाल के दौरान शिया-सुन्नी विवाद बहुत बढ़ गया। मलिकी को ईरान और अमेरिका समर्थन प्राप्त था। इस दौरान अधिकतर नीतियां शियाओं के लिए ही बनाई गईं। नौकरी से लेकर वेतन तक सुन्नी और शिया समुदाय में फर्क किया जाने लगा। सुन्नी समुदाय के अंदर असंतोष पैदा हुआ तो बगदादी के लिए भर्ती करना आसान हो गया।

गलती 5
सीरिया गृहयुद्ध से मिली मदद
2011-12 के बीच सीरिया में गृहयुद्ध शुरू हो गया। यहां के लोग राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता से हटाना चाहते थे। असद को रूस जैसी शक्ति का समर्थन प्राप्त था। ऐसे में अमेरिका ने भी विद्रोहियों को मदद पहुंचानी शुरू की। गृहयुद्ध के दौरान रक्का जैसे खुद इलाके में आईएस ने खुद को आसानी से स्थापित कर लिया।

टीबी, हैपेटाइटिस बी संक्रमित शरणार्थियों से डरा अमेरिका



अमेरिका पहुंचे शरणार्थी बच्चों में कुछ बीमारियों का खतरा स्थानीय बच्चों से कई गुना ज्यादा है। इतना ही नहीं इनमें से कुछ बीमारियां संक्रमण से फैलती हैं। इससे वहां भी बीमारियां पांव पसार सकती हैं। अमेरिकन जनरल ऑफ पब्लिक हेल्थ की हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। इस रिपोर्ट के बाद अमेरिका और यूरोप में शरण पाने की कोशिश कर रहे शरणार्थियों को नई मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

बीमार हैं बच्चे
रिपोर्ट में कहा गया है कि  भूटान, म्यांमार, कांगो, इथोपिया, इराक और सोमालिया से आए बच्चों में बीमारियों का खतरा कई गुना ज्यादा है। ये बच्चे अमेरिका पहुंचने से पहले ग्रामीण इलाकों और शरणार्थी शिविर में रहते थे। वहां उनको स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के कारण स्थिति और ज्यादा खराब हो गई है। ये बच्चे साल 2006 से 2012 के बीच अमेरिका पहुंचे हैं।

बच्चों में मिलीं बीमारियां
हैपेटाइटिस बी
देश                   अमेरिकी बच्चों की तुलना में बीमारी का खतरा (फीसदी में)
कांगो                             788
म्यांमार-थाइलैंड                  771
इथोपिया                          405
सोमालिया                        297


टीबी
देश                   अमेरिकी बच्चों की तुलना में बीमारी का खतरा (फीसदी में)
इथोपिया                          128
सोमालिया                        124
म्यांमार-मलेशिया                 112
कांगो                              111
थाइलैंड                            52
इराक                               34


एस.स्टीरकोरालिस यानि गोलकृमी
देश                   अमेरिकी बच्चों की तुलना में बीमारी का खतरा (फीसदी में)
इराक                                239
इथोपिया                             200
कांगो                               168
म्यांमार-थाइलैंड                   142
सोमालिया                           68
मलेशिया                             50