आज हम जहा भी देख रहे है हमे वही लोग नज़र आ रहे है जो भरष्टाचार के खिलाफ है ...कोई भी ऐसा मुझे अब याद नहीं जो खुद को भारस्ताचार का सहभागी बताता दिखे...जिसका उदहारण हम अन्ना हजारे के मोर्चो में देख सकते है ..जहा सभी india against corruption के पोस्टर लिए देखंगे ...आज पूरा भारत चाहता है की भारत सेcorruption का अंत हो जाए...मगर हम ये ही क्यों भूल जाते है की उस भरष्टाचार...उस corruption की जड़ कही न कही हम में ही है ...
आज एक आम विद्यार्थी से ले कर एक उच्च वर्गीय व्यक्ति यही चाहता है की इसका अंत हो...मगर हम ये क्यों भूले जा रहे है की ये देश हमसे ही बनता है..इस देश के नागरिक हम ही है...तो यहाँ corrupt भी हम ही है..आज अगर किसी काम के लिए लम्बी लाइन होती है तो हम उस लम्बी लाइन का हिस्सा बनने से बेहतर कुछ पैसा चपरासी को खिला कर खिड़की छोड़ के दरवाज़े से काम करवाना सही समझते है ....अब चाहे वो लाइन कॉलेज में फॉर्म जमा करने की हो या और किसी दफ्तर की... ऑटो में ४ की जगह ६ बेह्ताने वाले अपने ऑटो के आगे अन्ना हजारे का समर्थन करते नज़र आ रहे है...स्कूल और कॉलेज में अपने पढ़ाने के टाइम पे चाय की चुस्की लेने वाले बच्चो को अन्ना का समर्थन करना सिखा रहे है...हॉस्पिटल में कभी टाइम पे न आने वाले डॉक्टर खुल कर अन्ना की भाषा बोल रहे है ...और अब बात करते है उस उच्च वर्ग की जो अपनी पैसो की धोस दिखा कर हर जगह खुद को सर्वोच साबित कर जाते है ......तो क्या पैसा खाना ही corruption है????? खिलाना नहीं? हम किसका साथ दे रहे है ...अपने दुस्मानो का क्युकी हम खुद ही इसका हिस्सा है..हमे सर्कार से किसी बिल के लिए लड़ना छोड़ कर खुद से लड़ना सिख लेना चाहिए...
माना देश बहुत ब्रष्ट हो चूका है ..भारस्ताचार की दीमक इससे खाए जा रही है ...मगर ये दीमक अमेरिका या चीन की भेजी हुए नहीं है ...यहाँ आ के corruption जर्मनी या इटली नहीं करा ...अगर लड़ना है तो अपने अन्दर के corruption के कीड़े को मारना पड़ेगा तब कही जा कर ये देश सुधर पाएगा
ऐसे में सवाल हमे खुद से पूछना चाहिए...are we really against the corruption??
आज एक आम विद्यार्थी से ले कर एक उच्च वर्गीय व्यक्ति यही चाहता है की इसका अंत हो...मगर हम ये क्यों भूले जा रहे है की ये देश हमसे ही बनता है..इस देश के नागरिक हम ही है...तो यहाँ corrupt भी हम ही है..आज अगर किसी काम के लिए लम्बी लाइन होती है तो हम उस लम्बी लाइन का हिस्सा बनने से बेहतर कुछ पैसा चपरासी को खिला कर खिड़की छोड़ के दरवाज़े से काम करवाना सही समझते है ....अब चाहे वो लाइन कॉलेज में फॉर्म जमा करने की हो या और किसी दफ्तर की... ऑटो में ४ की जगह ६ बेह्ताने वाले अपने ऑटो के आगे अन्ना हजारे का समर्थन करते नज़र आ रहे है...स्कूल और कॉलेज में अपने पढ़ाने के टाइम पे चाय की चुस्की लेने वाले बच्चो को अन्ना का समर्थन करना सिखा रहे है...हॉस्पिटल में कभी टाइम पे न आने वाले डॉक्टर खुल कर अन्ना की भाषा बोल रहे है ...और अब बात करते है उस उच्च वर्ग की जो अपनी पैसो की धोस दिखा कर हर जगह खुद को सर्वोच साबित कर जाते है ......तो क्या पैसा खाना ही corruption है????? खिलाना नहीं? हम किसका साथ दे रहे है ...अपने दुस्मानो का क्युकी हम खुद ही इसका हिस्सा है..हमे सर्कार से किसी बिल के लिए लड़ना छोड़ कर खुद से लड़ना सिख लेना चाहिए...
माना देश बहुत ब्रष्ट हो चूका है ..भारस्ताचार की दीमक इससे खाए जा रही है ...मगर ये दीमक अमेरिका या चीन की भेजी हुए नहीं है ...यहाँ आ के corruption जर्मनी या इटली नहीं करा ...अगर लड़ना है तो अपने अन्दर के corruption के कीड़े को मारना पड़ेगा तब कही जा कर ये देश सुधर पाएगा
ऐसे में सवाल हमे खुद से पूछना चाहिए...are we really against the corruption??
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