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Saturday 24 December 2011

संसद बड़ी या अन्ना ???

भारत एक लोकतांत्रिक  देश है ..यहाँ पर  सरकार हम ही बनाते है..हमारे द्वारा चुने गए मंत्री संसद में जा कर सुचारू रूप से कार्य करते है ...ये कोई नई  बात नहीं है जो मैं आप सब को बता रही हूँ ...हम शुरू से हे ये देखते और पढ़ते आ रहे है ...मगर अब एक नई  ही तकनीक लोगो ने इजात कर ली है ..अनशन...जब कोई बात हमारे अनुरूप  नहीं हो रही होती हम इसी रास्ते पर  चल पड़ते है ..यहाँ तक बात समझ में आती है ..क्युकी  वो रास्ता जो हमे हमारे पूर्वजो ने दिखाया था..जिस  में बापू प्रमुख है ...आज कल जो लोग अनशन को अपना हथियार  बनाए हुए ह वो भी अपनी बात को इसी तर्क से ढकते है ...मगर मैं उन लोगो को ये बात याद दिलाना  चाहती हूँ की अब और पहले के वक़्त में ज़मीन में असमान का फर्क है
जिस गोरी सरकार के खिलाफ बापू और जवाहर लाल नेहरु लड़े थे ये वो सरकार नहीं है...ना ही कोई घुसपठी सरकार है ...ये सरकार हमने ही बनाए है और अब हम ही इनके काम में बाधा बने हुए है...सरकार जब कोई कदम उठाना चाहती है तब उसके सामने  अन्ना हजारे  करोड़ो लोगो के  सैलाब के साथ   उमड़ पड़ता है ..पहले तो लोगो की ये शिकायत थी की लोक पाल के मुद्दे को संसद में नहीं उठाया जा रहा...अब जब लोक पाल के मुद्दे को ले कर संसद सतर्क हुई  है तो क्यों संसद को अपना काम नहीं करने दिया जा रहा है ...ये वही अन्ना हजारे है जो पहले ये कह कर जनता का समर्थन पा रहे थे की उनका सम्बन्ध किसी राजनितिक पार्टी से नहीं है ..और अब वही सर्व दलिये बैठक करवा रहे है ...यु.पि.ऐ  सरकार के खिलाफ लोगो को भटका रहे है ...मैं इस सब के लिए केवल अन्ना हजारे जी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहुगी  क्युकी वो सिर्फ मोहरा है ..उनको हथियार बना कर सब अपना अर्थ सिद्ध करने में  लगे हुए है ....
शीत कालीन सत्र को बढाने के बावजूद टीम अन्ना को क्यों यकीन नहीं है के संसद जो करेगे वो इस देश के भविष्य के लिए सही ही होगा...क्यों इस बार भी अन्ना अनशन करने पर  अड़े हुए है ..जबकि उनको अभी तक  ये भी पता नहीं है आखिर ये लोक पाल बिल होगा कैसा ????
संसद हमेशा से जब सारे बिल को खुद ही बनाती आई  है जब किसी बार किसी अन्ना हजारे की ज़रूरत नहीं पड़ी तो इस बार क्यों संसद को अपना काम करने दिया जा रहा ...
टीम अन्ना का हम यकीन क्यों करे ऐसे तो हर गली हर नुकड़ पर  लोग अनशन करने बैठ जाएँगे ..फिर वो वक्त भी दूर नहीं है जब सब अपनी अपनी मांगे ले कर मंत्रियो  के घर के बाहर  बैठ जाएँगे ..ये लोकतंत्र ज़रूर है ..मगर लोकतंत्र का मतलब  मनमानी करना नहीं है...
अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित किया था  TO THE PEOPLE,FOR THE PEOPLE, BY THE PEOPLE...मगर आज जो भारत की दशा हो गयी है ..उसे तो लगता है लोकतंत्र को ऐसे परिभाषित करना चाहिए...TO THE PEOPLE ,FOR THE PEOPLE ,BY THE ANNA HAZARE...
अगर इस टीम अन्ना की जाँच करवाए जाए तो अन्ना हजारे के अलावा सब ही भ्रष्ट पाए जाएँगे
कही टीम अन्ना संसद को अन्ना के अधीन तो नहीं समझ रही  ...या अन्ना को संसद से सर्वोपरि तो नहीं समझ बैठी ...क्युकी हालात  अब यही सवाल उठा रहे है ... संसद बड़ी है या अन्ना ???
                                                                                                                          

                                                               

2 comments:

  1. I completely agree with Author's view that corruption in the system is somewhere a reflection of our society's moral values. And yes just building an institution won't be enough to solve corruption. I also agree that we don't need to worship Anna Hazare as a hero and his methods and force govt to accept his version of bill by a timeline. But it is equally important to at least take steps in the right direction.While I support all possible measures to stop all forms of corruption and black money, I do not support the method adopted by the team led by Anna Hazare.
    Comparisons with Gandhian struggle are not correct. Gandhiji was fighting a foreign ruler and his mission was to send out the foreigners and get Independence. He mobilised the common people as well as the educated and, often, his fast was against his own people when there was communal flare-up, or when his people killed Britishers. I will not belittle or ridicule our Independence

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