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Saturday 8 December 2012

अब बढेंगी मुश्किले।।

                    खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष  विदेशी निवेश के मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के दो  प्रमुख विरोधी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी संप्रग सरकार के साथ खड़े दिखे। पहले तो इन दोनों ने ही विदेशी निवेश को ले कर अपने पत्ते नहीं खोले थे और काफी हद तक इसको देश के हित में मानने को तैयार नहीं थे। समाजवादी पार्टी तो अब तक ये ही कह रही है की वो उत्तर प्रदेश में इससे नहीं लाएगी।  दोनों दलों  ने मेहेज़  अपनी  भाजपा से दूरी  बनाए रखने के लिए ही इस प्रस्ताव का समर्थन किया। जिसके चलते खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर  विपक्ष द्वारा लाये गए प्रस्ताव जिसमे इसको रद्द करने की बात थी , में विपक्ष का विरोध किया।
                    यहाँ तक तो बात समझ में आती है मगर असली मुसीबत समाजवादी  पार्टी के लिए अब खड़ी होने जा रही है। बसपा ने जब सरकार का समर्थन किया था तो उसके पीछे उसकी विशेष मंशा छुपी हुई थी।  बसपा का ऐसा मानना  है की ताज कोरिडोर मामले में भाजपा ने उनको फसाया। इस वजह से एक बदले की तरह ही सही बसपा भाजपा के विरोध में खड़ी  है। साथ ही कही न कही बसपा की ये मंशा भी ज़रूर रही होगी की सरकार का समर्थन कर देने से बसपा पर लटक रहा सीबीआई के  शिकंजा से उससे कुछ राहत मिल जाए।
बसपा ने एक तरह से सरकार का समर्थन कर के अप्रत्यक्ष रूप से एक समझौता  किया है। असल मुद्दा अब संविधान संशोधन का है। जिसमे अनुसूचित जाती और जनजाति को पदौन्नती में   आरक्षण देने की बात है।


                इस सब को दखते हुए मुसीबत अब समाजवादी  पार्टी के लिए बढ़ने वाली है। सपा का कहना है की यह संशोधन का प्रस्ताव देश के 85 प्रतिशत जनसँख्या का विरोध करता है। अगर ये प्रस्ताव लाया जाता है तो इस  पर सपा सरकार के साथ खड़ी  नहीं होगी। इतना ही नहीं भविष्य के लिए भी सपा संप्रग सरकार से सचेत हो जाएगी। इस मुद्दे पर यदि सभी दल एक साथ भी खड़े हुए तो भी सपा इसके विरोध के मुड में ही दिख रही है। जिस सपा ने संप्रग सरकार को आखरी वक्त पे आकर मुसीबत से निकला है चाहे वो खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश का मामला हो या राष्ट्रपति चुनाव का, उसे 2014 के  लोकसभा चुनाव में संप्रग से बदला निकलने का मौका अवाश्य मिल जाएगा और वर्त्तमान के समीकरणों को देखे तो  हो सकता है संप्रग को उस समय सपा के सामने अपने घुटने टेकने पद जाए।
 

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