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Sunday 1 July 2012

संसदऔर6 दशक

भारतीय संसद के 6 दशक पूर्ण हो चुके है। स्वतंत्र भारत में सर्वप्रथम 13 मई 1952 को संसद की बैठक हुई थी। यह हमारे लिए गौरव की बात है की भारतीय संसद के सफलता के 60 साल हो चुके है। 1952 से अब तक भारत में बहुत बदलाव आ चुके है। उस समय भारत की स्थिति बेहद दयनीय थी वह विश्व पटल पर मात्र ब्रिटेन की पूर्व कालोनी था। मगर आज वही देश विकास की तरफ तेज़ी से अग्रसर है। यह बदलाव सफल  संसदीय प्रणाली की देन  मन जाना चाहिए। इन्ही बदलावों के साथ उनकी नीतियों के साथ मांगो में भी परिवर्तन हुआ।
एक वक्त था जब सांसद अपनी निष्ठां , सुव्यह्व्हार ,संयम ,हाज़िरजवाबी एक वाक्य में कहा जाए तो "अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते थे". आज आलम यह है की जनता सांसदों को देख कर वह भाव नहीं उत्पन कर पाती जो एक समय में सांसदों के लिए रखा करती थी। पहले तो संसद वह महत्वपूर्ण जगह मानी जाती थी जहाँ से पूरे देश को संचालित करने के लिए नियम ,नीति ,कायदे बनाये जाते थे  मगर आज संसद में सर्वत्र ही  हीनता नज़र आती है। व्यर्थ की नारेबाजी ,शोरगुल ,हंगामा ,सदन अद्यक्ष के आसन के समक्ष धरने देना,कागज़  फाड़ कर एक दूसरे  पर उछालना बस यही सब आज संसद में दिखता है।
संसद को 60 साल पूरे होने में चंद घंटे ही बाकी थे की संसद में फिर एक अर्थहीन बात को मुद्दा बना कर जम कर बवाल मचा। इस बार मुद्दा बना था पाठ्यपुस्तक में छपा एक कार्टून। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और परिक्षण परिषद् की एक पाठ्यपुस्तक में छपे डॉ . भीम राव अमेब्कर के एक कार्टून पर संसद में जैसा व्यवहार किया गया वह बिलकुल गैर जिम्मेदाराना है। यह कार्टून 1949 में एक सुविख्यात कार्टूनिस्ट केशव शंकर पिल्ले ने बनाया था। पिल्ले उस वक्त के मात्र कार्टूनिस्ट ही नहीं एक ऐसी शख्सियत माने  जाते  थे जो राजनीतिज्ञों के काफी करीबी थे। वह बाबा और नेहरु जी दोनों को ही भली भांती जानते थे।
दरसल उस समय संविधान पूर्ण होने को था। सभी लोग इस बात से बहुत उत्साहित थे। इसी सोच के साथ बनाया गया यह कार्टून कही से भी ऐसा नहीं लगता की इसमें बाबा साहेब की अपमान किया गया हो। बल्कि बाबा साहेब एक ज़िम्मेदार शख्सियत रहे ऐसे में उनका मजाक उड़ने जैसी बात सोचना भी गलत है। पिल्ले की मने तो बाबा साहेब ने खुद ये कार्टून देखा था और काफी पसंद भी किया था। हमारे वर्त्तमान सांसदों को  भी इस मामले में संयम से काम लेना चाहिए था और कोशिश करनी चाहिए थी की इस मामले को ज्यादा हवा न दी जाती। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ वही हुआ जो अब तक होता आया है शोर,हंगामा और अंत में स्थगन।
60 साल पूरे होने के उपलक्ष में बुलाई विशेष बैठक में सारे सांसदों ने भविष्य में संसद की गरिमा को धयान में रखते हुए व्यवहार करने पर जोर दिया। मगर अब सवाल वही है की क्या यह हो सकता है?
संसद की गरिमा को ध्यान में रख कर क्या सांसद एक आदर्श छवि प्रस्तुत कर पाएँगे?


यकीन करना बहुत मुश्किल है क्योकि ऐसा ही कुछ संसद के 50 वर्ष पूरे होने पर बुलाई विशेष बैठक में कहा गया था मगर अगले ही दिन सांसदों ने अपने प्रण  को ताक  पर रख कर अपना पुराना लिबास पहन  लिया था।  संसद और 6 दशक 

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